Chat Box - 1 in Hindi Moral Stories by Anju Choudhary Anu books and stories PDF | चैट बॉक्स.… - 1

Featured Books
  • शून्य से शून्य तक - भाग 40

    40== कुछ दिनों बाद दीनानाथ ने देखा कि आशी ऑफ़िस जाकर...

  • दो दिल एक मंजिल

    1. बाल कहानी - गलतीसूर्या नामक बालक अपने माता - पिता के साथ...

  • You Are My Choice - 35

    "सर..."  राखी ने रॉनित को रोका। "ही इस माई ब्रदर।""ओह।" रॉनि...

  • सनातन - 3

    ...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ...

  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

Categories
Share

चैट बॉक्स.… - 1

भाग १

आज फिर से स्वाति को नींद नहीं आ रही थी, वो बैचेनी से अपने बिस्तर पर करवटे बदलते बदलते थक गई तो, अपने बेड की साइड की लाइट को ऑन कर दी और उठ कर पानी का गिलास एक ही घूँट में खत्म कर दिया,फिर अपना चश्मा लगा कर पास पड़े मोबाइल से ही वक़्त देखा तो रात के ३.२५ हो रहे थे|फिर उसने मोबाइल से ही फेसबुक लॉग इन कर...उस में आए मेसेज को देखने लगी | मेसेज पर अभी सरसरी नज़र डाल ही रही थी कि तभी एक क्लिक की आवाज़ के साथ उसे वंदना का मेसेज मिला’....

“जय श्री कृष्ण दी ! आप ओर इतनी रात को ऑनलाइन...सब ठीक है ना दी?”

मेसेज अचानक आया था इसी लिए दो सेकण्ड सोचने के बाद उसने चैट बॉक्स में ही जवाब दिया “राम राम गुड़िया ! हाँ बच्चे सब ठीक है....बस नींद एक बार खुली तो उसके बाद आई नहीं तो सोचा चलो मोर्निंगवाक के लिए आज फेसबुक पर चला जाए...’’

इतनी बात के बाद...मोबाइल की स्क्रीन पर ही उन दोनों की तरफ से ‘ही ही ही ही’ टाइप करने के साथ ही एक एक बड़ी सी स्माइली उभरती है और इस से पहले वो वंदना से कुछ पूछती वो ऑफ लाइन हो गई....

स्वाति ने फिर से मुड़ कर घड़ी देखी तो रात के ३.३० हुए थे...वैसे तो वो इस वक़्त ऑन लाइन नहीं होती पर आज पता नहीं , कैसे बिना सोचे फेसबुक खोल कर देखने बैठ गई....उसे अपनी बैचेनी तो समझ आ रही थी...पर वंदना इस वक़्त ऑन लाइन?ये बात वो अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रही थी...सोचते सोचते उसके सर की नसे फटने को हुई, माथा सहलाते हुए, अपने पास सोई हुई शल्लो आंटी (उसकी नौकरानी) को आवाज़ दी...तो वो भी एक दम से उठ कर बैठ गई...

शाल्लो आंटी...‘’क्या हुआ बिटिया? आज फिर से नींद नहीं आई ना तुम्हें? कितनी बार कहा है कि बेकार की बातों और अपने अतीत को अपने करीब ना आने दिया करो...काहे तुम मेरी कोई भी बात नहीं मानती हो....’’

“शल्लो आंटी! प्लीज़ अब आप आधी रात को ये भाषण मत शुरू करो ना.....’’स्वाति ने झल्लाते हुए कहा

“तुम आधी रात को बैठ कर ये मुआ मोबाइल चला सकती हो...पर मेरी बात नहीं सुन सकती...जाओ फ्रेश हो कर आओ...तुम्हारे लिए एक कड़क चाय बना कर लाती हूँ|’’ कहती हुई शल्लो आंटी रसोई में चली गई |

शल्लो आंटी तो अपनी बात कह कर चली गई पर स्वाति अपनी ही सोचों में गुम थी कि ‘वंदना इस वक़्त ऑन लाइन क्यों थी ? और वो मुझे ऑन लाइन देखते ही क्यों चली गई ? जबकि हम दोनों की तो मुलाकात भी नई नहीं थी | पिछले ३ साल से हम दोनों दिन में कम से कम २ से ३ घंटे एक साथ फेसबुक के इधर-उधर बैठ कर बातें करती आई थी इन्फैक्ट बहुत सारी बातें किया करती थी |

मैं हर बार सोचती थी कि जब वंदना मुझ से बातें करती है तो वो अपना अकेलापन तो बाँट लेती है, पर उम्र में मैं वंदना से बड़ी हूँ इसी वजह से मैं बहुत ज्यादा खुलेपन से वंदना के साथ बातचीत नहीं कर पाती हूँ |जिसकी वजह से मैं खुद में बहुत घुटन महसूस करती हूँ,मैं वंदना को कैसे कहूँ कि उसकी दी मन से कितनी अकेली है जबकि उसकी छवि वंदना की नज़रों में बहुत शांत और सरल है जबकि मैं खुद से ये जानती हूँ कि मैं अपनी जिंदगी में कितनी बेचैन और अशांत हूँ’| कुछ ऐसी ही सोचे अब स्वाति को परेशान करने लगी थी |

यूं तो पिछले तीन साल से वंदना और स्वाति दोस्त थे।फेसबुक पर चैट बॉक्स में बात करते करते दोनों कब इतने करीब आ गई,कि उन्हें भी पता नहीं चला था |उम्र में माँ-बेटी जैसी, पर दुनिया जहान की बातें शेयर की होंगी इन दोनों ने |कितनी बार ही दोनों के मिलने का तय हुआ था पर हर बार कोई ना कोई अड़चन आ जाती थी जिस से दोनों का मिलना टलता जा रहा था |स्वाति हर बार कोशिश करती,प्रोग्राम बनाती,यहाँ तक उसके आने तक की टिकट तक बुक करवा देती,पर हर बार वंदना की तरफ से ही कोई न कोई मज़बूरी आ जाती थी और उनका मिलना टल जाता |

वंदना कहा करती  थी कि उसका परिवार बड़ा था और इतने बड़े परिवार में से निकलना कोई आसान बात थोड़ी थी | और ये तो स्वाति को भी पता था क्योंकि स्वाति अभी कुछ वक़्त पहले ही बड़े परिवार से अलग हुई थी, कितने साल वो सास ससुर देवर देवरानी के साथ रह चुकी थी | बाहर जाने का तो छोड़ो उसे अपने लिए भी वक़्त कहाँ मिलता था |दोपहर के वक़्त में ही वो अपने कम्पूटर के लिए वक़्त निकाल सकती थी....उसी वक़्त में चाहे तो सो ले,किताब पढ़ ले, अपनी किसी सहेली के पास चली जाए या उसे अपने पास बुला ले या फिर कम्पूटर पे बैठ कर आभासी दुनिया के दोस्तों से बात कर ले |

रोजाना तो अख़बारों में आभासी दुनिया के किस्से पढ़ने को मिल जाया करते थे | इस लिए आभासी दुनिया अब आभासी नहीं रह गयी थी, गली के नुक्कड़ से लेकर इंडिया के हर कोने में फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या अपने इंडिया में तो अब आम बात हो गई थी..हर कोई फेसबुक..ट्वीटर..स्नेप चैट और इंस्टाग्राम पर अपना अकाउंट बना कर वहाँ पर हाज़िर था |

स्वाति ने जिंदगी में बहुत कम दोस्त बनाए थे।लोग उसे अकड़ू कह कर भी बुला लिया करते थे,पर स्वाति को कभी भी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वो सिर्फ उनके ही करीब थी जिसे उसने दिल से अपना माना था, उनके लिए वो हर वक़्त तैयार रहती थी, चाहे वो बात करना हो या उनकी किसी भी तरह से मदद करना ही क्यों ना हो |

उसकी जिंदगी का मतलब उसकी सहेलियाँ थी और उसके फेसबुक के मित्र थे. फेसबुक ने उसे बहुत कम, पर बहुत अच्छे मित्र दिए । वंदना उसमें से एक थी | स्वाति भी अपनी स्कूल वाली दोस्तों के अतिरिक्त फेसबुक दोस्तों से भी मिलती जुलती रहती थी |एक तो अब उसका काम ही ऐसा था....वेस्ट दिल्ली का माना हुआ बुटीक ‘मयूरी’ उसी का था |अपने एरिया में वो जानी-मानी हस्तियों में आती थी | पर आभासी  दुनिया में से अगर वो सबसे ज्यादा पसंद करती थी तो वो वंदना थी |

पता नहीं क्यों वंदना ने सबसे ज्यादा उसे अपनी ओर खींचा था,उसके दिल को टच किया था | फेसबुक ऑन करने के बाद अगर एक बार उसकी बात वंदना से ना हो तो उसे अपना दिन अधूरा सा लगता था |

आखिर वो वक़्त भी आ गया जब इन दोनों के मिलने का दिन तय हुआ | वंदना ने एक दिन खुद से फोन करके कहा कि वो दिल्ली एक रिश्तेदार की शादी में चार दिन के लिए आ रही है इस लिए स्वाति ने उसके लिए ये चार दिन एक दम फ्री रखे| स्वाति के शहर दिल्ली में, वंदना के किसी रिश्तेदार की शादी में आ रही थी और सबसे अच्छी बात ये थी कि  वंदना ने कहा कि वो अकेली आ रही है। स्वाति ने सोच लिया था कि दिल्ली का कोई भी हिस्सा ही क्यों ना हो...वो वंदना से वहाँ मिलने जरूर जाएगी,उसे अपने साथ घर लेके आएगी और उसके साथ पूरा दिन बिताएगी, पता नहीं उसके बाद कभी फिर से मिलना हो या ना हो | उस दिन के बाद,स्वाति को वंदना के आने का इंतज़ार बढ़ गया |

और कुछ ही दिनों में वंदना का फोन आया ''दीदी मैं दिल्ली आ गई हूँ और शादी आज ही रात की है,इस लिए शादी में जाने के लिए,अभी सीधा नोएडा जा रही हूँ...वहाँ से फ्री होते ही आपको फोन करके, अपने मिलने का समय तय करती हूँ |प्लीज़-प्लीज़  आप मेरे लिए अपना आप को खाली रखना |मुझे आपसे बहुत सारी बातें करनी हैं, मुझे जब भी वक़्त मिलेगा, मैं खुद आपको फोन करके सब बता दूँगी,  आने का वक़्त भी और दिन भी ''|

और फोन कट ....स्वाति यूं ही बुत बनी खड़ी बस उसकी बातें ही सुनती रही |वंदना ने उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया....ना हालचाल पूछा और ना बताया |जबकि स्वाति उससे बहुत कुछ पूछना चाहती थी,बताना चाहती थी ....पर कुछ नहीं हुआ....जिस स्पीड से उसने बात शुरू की थी उतनी ही स्पीड से बात करके उसने फोन काट दिया |

पर स्वाति ने ये जरूर महसूस किया कि बात करते-करते वंदना का गला भर आया था | शायद वो रोई भी थी...ऐसा स्वाति को लगा था पर स्वाति ने मन में उठ रहे बेकार के सवालों को वही रोक दिया कि 'वंदना तो यहाँ शादी में आई हुई है वो तो खुश होगी ...रोएगी क्यों '|उसने इस विचार को अपने दिमाग से ही निकाल फेंका |

अगले दो दिन स्वाति के बहुत ही बेचैनी में निकले | वो घर से बाहर जब भी रहती तो रास्ते में पड़ने वाले हर शादी के पंडाल पर उसी नज़र अपने आप ही ठहर जाती, उसे ऐसा महसूस होता कि शायद वंदना अभी उसे यहीं-कहीं  इसी शादी में मिल जाएगी और मोबाइल पर बजने वाली हर रिंगटोन उसे ऐसा लगता जैसे वंदना  का ही फोन आया होगा |बार बार अपना मेसज-बॉक्स और फेसबुक  का इनबॉक्स जा कर देखती कि शायद यहाँ कोई उसका मेसेज मिल जाए ...पर सब बेकार था |वंदना ने तो उसे अपना मोबाइल नंबर तक नहीं दिया था .....वो उस से बात करती भी तो कैसे करती ....कोई संपर्क-सूत्र नहीं था |उसने वंदना को सिर्फ तस्वीरों में ही देखा था |दो दिन तक उसके लैपटॉप पर वंदना की ही प्रोफाइल खुली पड़ी रह गई....हजारों बार उसने वंदना की तस्वीर देख डाली कि मिलने पर उसे ज़रा भी गलती ना लगे और उसे वंदना के आगे शर्मिंदगी ना उठानी पड़े |

वंदना को दिल्ली आए तीन दिन बीत चुके थे....आज चौथा दिन था यानि आज उसकी ट्रेन होगी वापिसी की,पर वंदना ने मुड़ कर उसे अभी तक कोई फोन नहीं किया था | वो अभी भी वंदना के चैट -बॉक्स खोल कर उसके साथ की हुई अपनी और उसकी बातें पढ़ ही रही थी कि तभी उसके घर की डोर-बेल बज उठी ....इस वक़्त स्वाति को दरवाज़ खोलने के उठना भी बहुत भारी लग रहा था क्योंकि उस चैट को पढ़ते हुए वो वंदना को अपने बहुत करीब महसूस कर रही थी|

जैसे ही स्वाति ने दरवाजा खोला ....तो कोई ''सरप्राइज़'' कहते हुई उसके गले से लिपट गई,स्वाति सकते में थी कि एकदम से कौन आई और इतने अपनेपन से उसके गले से लिपट गई,पर वो तो आने वाली का चेहरा भी नहीं देख सकी | तभी उसे ध्यान आया कि वंदना ने आने के लिए कहा था, कहीं ये वो ही तो.....| 

(क्रमशः)